कल्याण अर्थशास्त्र और लोक वित्त स्वास्थ्य और श्रम अर्थशास्त्र में
2.
उसका अभिप्राय आनंद अथवा पीड़ा की अधिकता और न्यूनता से था, उसके अनुसार उपभोक्ता आर्थिकी को आगे बढ़ाने लिए तथा कल्याण अर्थशास्त्र के विचार को नया स्वरूप देने के लिए यही दोनों जिम्मेदार हैं. '
3.
‘उपभोक्ता वरीयता सिद्धांत‘ में उनके द्वारा प्रस्तावित ‘प्रकट वरीयता सिद्धांत‘, कल्याण अर्थशास्त्र में किसी आर्थिक निर्णय के सामाजिक कल्याण पर प्रभाव को नापने के लिये दिये गये उनके ‘लिन्ढाल-सेमुएल्सन-बावेन स्थितियों के सिद्धांत‘, लोक वित्त के क्षेत्र में लोक तथा निजी वस्तुओं के आदर्श निर्धारण के लिये प्रस्तुत माडल और अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में उनके द्वारा विकसित दो ट्रेड माडल आधुनिक अर्थशास्त्र को दिये गये उनके तमाम अवदानों में सबसे उल्लेखनीय हैं।
4.
‘उपभोक्ता वरीयता सिद्धांत‘ में उनके द्वारा प्रस्तावित ‘प्रकट वरीयता सिद्धांत‘, कल्याण अर्थशास्त्र में किसी आर्थिक निर्णय के सामाजिक कल्याण पर प्रभाव को नापने के लिये दिये गये उनके ‘लिन्ढाल-सेमुएल्सन-बावेन स्थितियों के सिद्धांत‘, लोक वित्त के क्षेत्र में लोक तथा निजी वस्तुओं के आदर्श निर्धारण के लिये प्रस्तुत माडल और अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में उनके द्वारा विकसित दो ट्रेड माडल आधुनिक अर्थशास्त्र को दिये गये उनके तमाम अवदानों में सबसे उल्लेखनीय हैं।
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उपभोक्ता वरीयता सिद्धांत ‘ में उनके द्वारा प्रस्तावित ‘ प्रकट वरीयता सिद्धांत ‘, कल्याण अर्थशास्त्र में किसी आर्थिक निर्णय के सामाजिक कल्याण पर प्रभाव को नापने के लिये दिये गये उनके ‘ लिन्ढाल-सेमुएल्सन-बावेन स्थितियों के सिद्धांत ‘, लोक वित्त के क्षेत्र में लोक तथा निजी वस्तुओं के आदर्श निर्धारण के लिये प्रस्तुत माडल और अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में उनके द्वारा विकसित दो ट्रेड माडल आधुनिक अर्थशास्त्र को दिये गये उनके तमाम अवदानों में सबसे उल्लेखनीय हैं।